आओ फिर मोमबत्ती जलायें , मोमबत्ती जुलूस निकाले, वयस्था व प्रशासन को कोसे , सोशल साइट्स पर पोलिस को लानत भेजे। फिर AC मैं बेठ कर वीक एण्ड के प्लान बनाए।
क्यों हम ऐसे हो गए है , हमारी मेमोरी क्यू शॉर्ट टर्म हो गयी है ? जब भी कोई मासूम के साथ दरिंदगी की ख़बर सुनते है , तो हर माँ का कलेजा काँप जाता है , हम डरते सहमते है फिर अपने जीवन मैं रम जाते है?
किसी को बदला लेना है तो उस घर की औरत या बच्ची की इज़्ज़त तार तार कर दो , किसी की प्रतिस्ठा को हानि पहुँचानी हो तो उस घर की औरतों लड़कियों को बदनाम कर दो ।
कितना आसान है ना पुरुष वर्ग के लिए यह सब करना।
जहाँ लड़कियाँ बड़ी हुई हर तरफ़ से उपदेश मिलने लगते है , ठीक से बेठो , थीरे बोलो , ज़ोर से मत हँसो , अदब से रहो , पूरे तन को ढँके ऐसे कपड़े पहनो।
जब भी कोई पुरुष ऐसी कायरना वहशी हरकतें करते है तब लड़कियों के आचरण , उनकी पोशाखो पर , रहन सहन को ज़िम्मेदार बना दिया जाता है , ग़ोया की पैदा होते ही लड़की को साढ़े पाँच गज़ की साड़ी मैं लपेटने से पुरुष की लोलूपता पर लगाम लग जाएगी। कुल मिला कर कल्प्रिट भी हम और विक्टिम भी हम।
परसों अलीगढ़ मैं ढाई साल की बच्ची के साथ जो अमानवीय क्रत्य हुवा है , उस घटना के लिए शब्द नहीं है , आक्रोश है घुटन है , व्यवस्था के प्रति समाज के प्रति।
क्यों कोई माँ अपने बेटे को औरत जात का सम्मान करना नहीं सिखा पाती है , क्यों एक पिता अपने बेटों को सामाजिक ज़िम्मेदारियों को ठीक से निभाने की सिख नहीं दे पाता है ?
आओ हम भी एक मोमबत्ती जलाले , व्यवस्था को लानत भेजे , घड़ियलि आँसू बहा ले ,कुछ सेल्फ़ियाँ खिच ले , और घर जा कर वर्ल्ड कप क्रिकेट का मज़ा ले ।
मेरी क़लम से ✍️
उषा .......
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